तीन नवंबर को मध्य प्रदेश में 28 विधानसभा क्षेत्रों में होने वाले उपचुनाव सत्ता-सियासत के नजरिए से तो निर्णायक साबित होंगे ही, देशभर के लिए ऐतिहासिक और यादगार भी रहेंगे। ये चुनाव सीधे प्रदेश की सत्ता का फैसला करने के साथ-साथ दिग्गजों का कद और सियासत की नई दिशा भी तय करेंगे। सबसे ज्यादा 16 सीटें उस ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में हैं, जो राज्यसभा सदस्य ज्योतिरादित्य सिंधिया का गढ़ है। चूंकि अब सिंधिया भाजपा में हैं, ऐसे में उन्हें भी अपनी ताकत दिखानी है। ये वे सीटें हैं, जहां कांग्रेस ने बड़े अंतर से जीत दर्ज की थी। अब इन्हें अपने खाते में लाना भाजपा के लिए चुनौती है। वहीं, यहां पहली बार कांग्रेस सिंधिया के बिना चुनाव मैदान में होगी तो उसे भी साबित करना है कि बिना उनके भी वह यहां मजबूत है।
सरकार बचाने के लिए भाजपा को चाहिए नौ सीट
भाजपा को सत्ता बचाए रखने के लिए नौ सीटों की जरूरत है, जबकि कांग्रेस को वापसी के लिए सभी सीटें जीतनी होंगी। उपचुनाव में सत्तापक्ष का पलड़ा हमेशा भारी होता है, इसलिए कांग्रेस के लिए राह आसान नहीं लगती, लेकिन इससे भाजपा की मुश्किलें भी कम नहीं होतीं हैं। यदि परिणाम आने के बाद कांग्रेस 100 का आंकड़ा पार करती है तो बतौर मजबूत विपक्ष वह अगले तीन साल तक सरकार को चैन से बैठने नहीं देगी।