नेशनल कांफ्रेंस बदले सियासी माहौल में तालमेल बैठाते-बैठाते खुद असमंजस में पहुंच गई है। पार्टी का शीर्ष नेतृत्व समेत लगभग उसके सभी नेता प्रशासनिक पाबंदियों से बाहर हैं, लेकिन पार्टी के अंदर नीतिगत विचारों की दो नाव बहने लगी हैं। पार्टी का धड़ा बदले हालात के साथ आगे बढ़ना चाहता है, जबकि दूसरा धड़ा अभी भी पांच अगस्त के पहले की स्थिति पर अटका है। इन्हीं मतभेदों को पाटने के लिए पार्टी अध्यक्ष डॉ. फारूक अब्दुल्ला ने खुद कमान खुद संभाल रखी है।
फारूक का अन्य दलों से संवाद और उसके बाद गुपकार घोषणा को दोहराना अपने साथ कट्टरपंथी गुट को भी जोड़े रखने की मुहिम का ही हिस्सा था। वहीं कई बार शीर्ष नेतृत्व बीच का रास्ता खोजने की चाह भी दिखाता दिखा। यहां तक कि पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला साफ कर चुके हैं कि वह भारत के बिना किसी तरह की सियासत में अपना भविष्य नहीं देखते हैं।